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आंचल-पट पर दृश्य जगत के,
अमित कामिनी छल-छल छलके;
वसन जो उघारे उघरे हिय ललचाए,
ले अंगड़ाई सब अलसाए;
स्निग्ध बदन को नज़र जो छुए,