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अख़बार / गुलज़ार

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नया पृष्ठ: {{KKRachna |रचनाकार=गुलज़ार |संग्रह = पुखराज / गुलज़ार }} <poem> सारा दिन मैं खू…
{{KKRachna
|रचनाकार=गुलज़ार
|संग्रह = पुखराज / गुलज़ार
}}
<poem>
सारा दिन मैं खून में लथपथ रहता हूँ
सारे दिन में सूख-सूख के कला पड़ जाता है खून
पपड़ी सी जम जाती है
खुरच खुरच के नाखूनों से चमड़ी छिलने लगती है
नाक में खून की कच्ची बू
और कपड़ों पर कुछ काले काले चकते से रह जाते हैं

रोज़ सुबह अखबार मेरे घर
खून से लथपथ आता है
</poem>
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