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अख़बार / गुलज़ार
Kavita Kosh से
सारा दिन मैं खून में लथपथ रहता हूँ
सारे दिन में सूख-सूख के काला पड़ जाता है ख़ून
पपड़ी सी जम जाती है
खुरच-खुरच के नाख़ूनों से चमड़ी छिलने लगती है
नाक में ख़ून की कच्ची बू
और कपड़ों पर कुछ काले-काले चकत्ते-से रह जाते हैं
रोज़ सुबह अख़बार मेरे घर
ख़ून से लथपथ आता है