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कुल्हाड़ा पेड़ को कब काटता है
जुदा जो गोश्त <ref>मांस</ref> को नाख़ून से कर दे
वो मसलक<ref>धर्म</ref> हो के मशरब<ref>मज़हब</ref> काटता है
अकीदा<ref>यकीन, विश्वास</ref> सारे करतब काटता है
कही जाती नहीं हैं जो ज़ुबाँ <ref>ज़ुबान</ref> से
उन्ही बातों का मतलब काटता है
तू होता साथ तो कुछ बात होती
अकेला हूँ तो मनसब<ref>ओहदा,पद</ref> काटता है
जहाँ तरजीह<ref>प्राथमिकता</ref> देते हैं वफ़ा को
ज़माने को वो मकतब<ref>स्कूल,</ref> काटता है
उसे तुम ख़ून भी अपना पिला दो
मिले मौक़ा तो अकरब <ref>निकटतम व्यक्ति,</ref> काटता है
ये माना साँप है ज़हरीला बेहद
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