भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उसे तो कोई अकरब काटता है / आदिल रशीद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उसे तो कोई अकरब<ref>निकटतम व्यक्ति</ref> काटता है
कुल्हाड़ा पेड़ को कब काटता है

जुदा जो गोश्त<ref>मांस</ref> को नाख़ुन से कर दे
वो मसलक<ref>धर्म</ref> हो के मशरब<ref>मज़हब</ref> काटता है

बहकने का नहीं इमकान<ref>उम्मीद</ref> कोई
अकीदा<ref>यकीन, विश्वास</ref> सारे करतब काटता है

कही जाती नहीं हैं जो ज़ुबाँ<ref>ज़ुबान</ref> से
उन्ही बातों का मतलब काटता है

वो काटेगा नहीं है खौफ़ इसका
सितम ये है के बेढब काटता है

तू होता साथ तो कुछ बात होती
अकेला हूँ तो मनसब<ref>ओहदा,पद</ref> काटता है

जहाँ तरजीह<ref>प्राथमिकता</ref> देते हैं वफ़ा को
ज़माने को वो मकतब<ref>स्कूल,</ref> काटता है

उसे तुम ख़ून भी अपना पिला दो
मिले मौक़ा तो अकरब<ref>निकटतम व्यक्ति,</ref> काटता है

ये माना साँप है ज़हरीला बेहद
मगर वो जब दबे तब काटता है

अलिफ़,बे० ते० सिखाई जिस को आदिल
मेरी बातों को वो अब काटता है

शब्दार्थ
<references/>