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10:58, 29 अगस्त 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रविकांत अनमोल
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<poem>
वो हमारे हो न पाए बात बस इतनी सी थी
और हमने सारी दुनिया से किनारा कर लिया
उनकी यादें अपने सपने दफन कर डाले कहीं
और खुद को बैठे-थाले बेसहारा कर लिया
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