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कीड़ा मीठे में पड़ते देखा है / श्रद्धा जैन
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|रचनाकार= श्रद्धा जैन
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हमने गुलशन उजड़ते देखा है
भाई-भाई को लड़ते देखा है
इतनी वहशत जुदाई से 'तौबा'
ख़्वाब तक में बिछड़ते देखा है
बोझ नजदीकियाँ न बन जाएँ
कीड़ा मीठे में पड़ते देखा है
एक बस दिल की बात सुनने में
हमने रिश्ता बिगड़ते देखा है
अब तो गर्दन बचाना है मुश्किल
पाँव उनको पकड़ते देखा है
हार दुनिया ने मान ली "श्रद्धा"
जब तुझे जिद पे अड़ते देखा है
</poem>
Shrddha
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