भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कीड़ा मीठे में पड़ते देखा है / श्रद्धा जैन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमने गुलशन उजड़ते देखा है
भाई-भाई को लड़ते देखा है

इतनी वहशत जुदाई से 'तौबा'
ख़्वाब तक में बिछड़ते देखा है

बोझ नजदीकियाँ न बन जाएँ
कीड़ा मीठे में पड़ते देखा है

एक बस दिल की बात सुनने में
हमने रिश्ता बिगड़ते देखा है

अब तो गर्दन बचाना है मुश्किल
पाँव उनको पकड़ते देखा है

हार दुनिया ने मान ली "श्रद्धा"
जब तुझे जिद पे अड़ते देखा है