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तुम अगर बेकरार हो जाते / शेरजंग गर्ग
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02:07, 18 सितम्बर 2010
हम बहुत शर्मसार हो जाते।
तुम जो आते तो
चान्द
चन्द
ही
लमहात
लम्हात
,
इश्क
इश्क़
की यादगार हो जाते।
एक अपना
तुम्हे
तुम्हें
बनाना था,
ग़ैर चाहे हज़ार हो जाते।
तुम जो मिलते इशारतन हमसे,
दोत
दोस्त
भी बेशुमार हो जाते।
आसरा तुम अगर हमें देते,
द्विजेन्द्र द्विज
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