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फिर आज खड़े हैं सब के सब
सरकार! अड़े हैं सब के सब

यह पेड़ बहुत कमजोर सही
आंधी से लड़े हैं सब के सब

दो चार कहो तो मान भी लूँ
कब पाँव पड़े हैं सब के सब

या तेल है सबके कानों में
या चिकने घड़े हैं सब के सब

बुनियाद मिले तो महलों की
गहरे ही गड़े हैं सब के सब </poem>