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<poem>
ज़माँ मकाँ<ref>समय और अंतरिक्ष</ref > थे मेरे सामने बिखरते हुए ।मैं ढेर हो गया तूल-ए-सफ़र<ref>लम्बा सफ़र</ref> से डरते हुए ।
बस एक ज़ख़्म था दिल में जगह बनाता हुआ
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