भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
एक तू हर्फ़ आशना था मगर
अब ज़माना नहीं के तुझसे कहें
क़ासिद ! हम फ़क़ीर लोगों का
एक ठिकाना नहीं के तुझसे कहें
ऐ ख़ुदा दर्द-ए-दिल है बख़्शिश-ए-दोस्त