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।रचनाकार=मनोज भावुक

।संग्रह

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देखलीं जे बइठि के दरिया किनारे
डूबके देखला प लागल भिन्न, यारे

घर के कीमत का हवे, ऊहे बताई
जे रहत फुटपाथ पर लँगटे-उघारे

ना परे मन घर कबो बबुआ के भलहीं
रोज बुढ़िया भोर में कउवा उचारे

बस कहे के हम आ ऊ साथ रहीले
साथ का, जब पड़ गइल मन में दरारे

ख्वाब में भी हम कबो सोचले ना होखब
वक्त ले जाई कबो ओहू दुआरे
</poem>