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देखलीं जे बइठि के दरिया किनारे/ मनोज भावुक
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|रचनाकार=मनोज भावुक
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देखलीं जे बइठि के दरिया किनारे
डूबके देखला प लागल भिन्न, यारे
ख्वाब में भी हम कबो सोचले ना होखब
वक्त ले जाई कबो ओहू दुआरे
</poem>
अनिल जनविजय
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