Changes

कल रात दूर कही कोई / इवान बूनिन

644 bytes added, 09:32, 29 अक्टूबर 2010
खिड़की खोली मैंने और गीत वह सुनता रहा
सो रही तू...... मैं रूप तेरा गुनता रहावर्षा से भीगी थी रई, खेत महक रहा थाठंडी और सुगंधित रात, मन बहक रहा था उस पीड़ित कंपित स्वर ने रुह को जगा दियापता नहीं क्यों, उसने मुझको उदास बना दियामन में मेरे आया तुझ पर तब वैसा ही लाड़कभी जैसे तू करती थी मुझसे जोशीला प्यार
(1889)
'''मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,440
edits