खिड़की खोली मैंने और गीत वह सुनता रहा
सो रही तू...... मैं रूप तेरा गुनता रहावर्षा से भीगी थी रई, खेत महक रहा थाठंडी और सुगंधित रात, मन बहक रहा था उस पीड़ित कंपित स्वर ने रुह को जगा दियापता नहीं क्यों, उसने मुझको उदास बना दियामन में मेरे आया तुझ पर तब वैसा ही लाड़कभी जैसे तू करती थी मुझसे जोशीला प्यार
(1889)
'''मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
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