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Kavita Kosh से
कितनी भीड़ उतर आई
मुश्किल से साँवली सड़क की
देह नजर नज़र आई ।
कल पर काम धकेल आज की
चुटकुले बिखरे घुँघराले
पाँव, पंख हो गए
थकन की जंजीरों ज़ंजीरों वाले
गंध पसीने की पथ भर
बतियाती घर आई
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