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आसार-ए-कदीमा/जावेद अख़्तर

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एक पत्थर की अधूरी मूरत
चाँद चंद तांबें के पुराने सिक्के
काली चांदी के अजब जेवर
और कई कांसे के टूटे बर्तन
लोग कहते है की सदियों पहले
आज सहारा है जहां
वहीँ एक सहर शहर हुआ करता था
और मुझको ये ख्याल आता है
किसी तकरीब <ref>समारोह</ref>
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