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|संग्रह=गीतिका / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला";रागविराग / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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रँग गई पग-पग धन्य धरा,---
हुई जग जगमग मनोहरा ।
 
वर्ण गन्ध धर, मधु मरन्द भर,
तरु-उर की अरुणिमा तरुणतर
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