[[Category: दोहा]]
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सूंई धारां ओसर्यो दूधां-वरण अकास ।
रात-दिवस लागै झड़ी सुरंगै सावण मास ।।71।।
सूंई धारां ओसर्यो दूधां-वरण अकास।रात-दिवस लागै झड़ी सुरंगै सावण मास।। 71।। दुग्ध वरण का आकाश सीधी धाराओं में बरस रहा है। है । सुरंगै सावन के महीने में रात-दिन झड़ी लग रही है।है ।
फांफां लाग्यां फाटिया भींतां लेव तमाम।तमाम ।जाणै मन सूं मांडियां चीतारै चित्राम।। 72 ।।चित्राम ।।72।।
दीवारों पर किया हुआ लेप जल के झोंकों से फट कर ऐसा लगता है मानो चित्रकार ने मन लगा कर चित्र बनाये हों।हों ।
घिरघिर घूमै बादळी फुरफुर चालै वाय।वाय ।हिवडै लागै गिलगिली ठोड न ठहर्यो जाय।। 73।।जाय ।।73।।
घिर-घिर कर बादल घुम रहे है और फिर -फिर कर हवा चल रही है। है । हृदय में हल्की गुदगुदी -सी होती है। और एक स्थान पर नहीं ठहर जाता।ठहरा जाता ।
बरसै भूरी बादळी दीसै थोड़ी दूर।दूर ।आवै हळका लैरका, लद्-लद् सौरम-पूर।। 74।।पूर ।।74।।
बरसती हुई भूरी बादली थोड़ी दूर पर दिखाई दे रही है। है । पवन की हल्की लहरियां लहरियाँ पूर्ण सौरम सौरभ (सुगन्ध) से लदी हुई आ रही है।हैं।
सोरम आवै सौगुणी मिळियों धर सूं मेह।मेह ।डूंगै सांसां जग पियै हिवडै़ भीतर नेह।। 75।।नेह ।।75।।
धरा से मेह का मिलन हुआ है जिससे सौगुनी सौरम सौरभ (सुगन्ध) आ रही है। संसार गहरे सांसों साँसों से हृदय में स्नेह पी रहा है।
सावण सांझ सुहावणी वाजै झीणी वाळ।वाळ ।गावै मूमल गोरड्या खावै हियो उछाळ।। 76।।उछाळ ।।76।।
सावन की संध्या सुहावनी है। धीमी हवां हवा चल रही है और गोरियां ‘‘ गोरिया "मूमल ‘‘ " गीत गा रही है जिससे हृदय उछाल खा रहा है।है ।
बोलै हरिया सुवटा उड़-उड़ विरछां डाळ।डाळ ।डरर-डरर रव डेडरां पोखरियां री पाळ।। 77।।पाळ ।।77।।
वृक्षो की डालियों पर उड़-उड़ कर हरे शुक बोल रहे है और पोखरों के किनारे मेढंक ‘‘डर्रमेंढक ‘टर्र-डर्र’’ ध्वनि टर्र’ कर रहे है।है ।
नान्हा गीगा पालणै खिल-खिल उछळिया।उछळिया ।चूसै गूंठो चाव सूं मारै पग्गलिया।। 78।।पग्गलिया ।।78।।
छोटे शिशु पलनों में हंसहँस-हंस हँस कर उछल रहे है और चाव से अंगूठा अँगूठा चूसते है तथा पैर फटकारते है।है ।
बाखळ रमै गुडाळियां छोटा टाबरियां।टाबरियां ।छांट्यां पकड़ण छोळ में रूढ़-रूढ़ लड़खड़िया।। 79।।लड़खड़िया ।।79।।
छोटे बालक आंगन आँगन में घुटनो से चल रहे है और बूंदे बूँदें पकड़ने के आनन्द में लुढ़क-लुढ़क कर गिर रहे है।हैं ।
नाचै खड़ी गुवाड़ में टांबरियां री टोळ।टोळ ।झुक-झुक जोवै बादळी उझळ पडै़ दे छोळ।। 80।।छोळ ।।80।।
बालकों की टोलियां टोलियाँ मौहल्ले में खड़ खड़ी नाच रही है। हैं । बादली उनको झुक-झुक कर देख रही है और आनंदातिरेक में छलक पड़ती है।है ।</poem>