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दुख तो गाँव–मुहल्ले के भी हरते आए बाबूजी
पर जीवन जिनगी की भट्ठी में खु.द खुद जरते आए बाबूजी।
कुर्ता, धोती, गमछा, टोपी सब तो नहीं जुटा पाएजुट पाना मुश्किल था
पर बच्चों की फ़ीस समय से भरते आए बाबूजी।
बड़की की शादी से लेकर फूलमती के गवने गौने तक
जान सरीखी धरती गिरवी धरते आए बाबूजी।
पूरे जीवन कोट–कचहरी करते आए बाबूजी।
रोज़ वसूली कोई न कोई,खाद कभी तो बीज कभी