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{{KKRachna
|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा
|संग्रह=म्हारी पाँती पांती री चितावां चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा
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[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
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<Poem>
 
 
कुण कैवै
म्हैं कीं नीं लिख्यो
म्है रच्यो
जीवण।जीवण ।
अबै सोच -
म्हारो रचाव
कविता सूं
कीं बेसी ईं हुवैला। हुवैला ।
</Poem>
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