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विश्वामित्र ऋषि संगे श्री राम लखन जी / भवप्रीतानन्द ओझा
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धनुष भंग
घैरा
विश्वामित्र ऋषि संगे श्री राम लखन जी
पहुँचला जनक के धाम हो
रामा, सुनि सीता सखि संगे चढ़ली अटरियाँ
पुछथीं कवन छिका राम हो
अंगुरी बताये सखि कहथी जानकी से
वहे राम दुर्वा-दल श्याम हो
रामा, दाहिने श्री विश्वमित्र छोटे भैया लछुमन
गौर वरण छथीन बामे हो
पूरन चन्द मुख कमल नयनमा
हाथे शोभे धनुष ओ बाण हो
रामा, मोर मुकुट आरो पीताम्बर शोभे
छाती, कमरी सिंह समान हो
वहे छीका रामचन्द्र देखु नृप-नन्दिनि
गले बनमाला शोभायमान हो
रामा, कहथी जे भवप्रीता देखी सीता हरखी
मने-मने करथी प्रणाम हो।