भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वे हैं एकमात्र सब मेरे / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
वे हैं एकमात्र सब मेरे, मैं हूँ एकमात्र उनकी।
वे हैं सदा साथ मेरे, मैं चरण सेविका नित उनकी॥
नहीं बिछुड़ते कभी किसी भी कारण से हम दोनों ही।
सदा मिले रहते नित करते नव विलास हम दोनों ही॥