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वो नित नवीन लक्ष्य है गढ़ता चला गया / रंजना वर्मा

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वो नित नवीन लक्ष्य है गढ़ता चला गया।
हर मोड़ गिरा किन्तु सँभलता चला गया॥

ठोकर उसी को'राह में' हर बार है मिली
जो मात्र सत्य के लिये लड़ता चला गया॥

है न्याय मिल सका नहीं' संसार से कभी
कानून पे'विश्वास ही' करता चला गया॥

नफ़रत की'आँधियों ने' जिसे था सुखा दिया
उपवन मिला जो' प्यार तो खिलता चला गया॥

था डूबता जहाज नहीं साथ कोई' भी
फिर भी रुके बिना ही 'वो' बढ़ता चला गया॥

सीमा न टूट जाये'सहनशीलता की' अब
अन्याय दिल जहान के सहता चला गया॥

प्रण तो नहीं लिया परोपकार का कभी
खुद से ही'मगर धर्म ये' निभता चला गया॥