(राग विहाग-तीन ताल)
व्याध बिनवत दोऊ कर जोरे।
‘मोतें देव ! दयानिधि ! भारी दोष भयो भोरे।
मैं जान्यौ ठाढ़ौ मृग मगमें ताते तेहि मार्यो।
बेध्यौ पाद-पदुम प्रभु केञ्रौ कूञ्र कुञ्मति हार्यौ॥
दीजै दंड पतित पापी कौं सकुञ्च न करि सपने’।
प्रभु कह-’तेरौ दोष नहीं कछु हौं प्रेरक अपने’॥