शंकर -स्तवन-6
 ( छंद 159, 160)
 (159)
पिंगल जटाकलापु माथेपै पुनीत आपु,
 पावक नैना प्रताप भ्रूपर बरत है। 
लोयन बिसाल लाल ,सोहै भालचंद्र भाल, 
कंठ कालकूटु, ब्याल-भूषन धरत है।।
 संुदर दिगंबर , बिभूति गात, भाँग खात, 
रूरे सृंगी पूरें काल-कंटक हरत हैं। 
देत न अघात रीझि , जात पात आकहींकें,
 भोरानाथ जोगी जब औढर ढरत हैं।।
(160) 
देत संपदासमेत श्रीनिकेत जाचकनि, 
भवन बिभूति-भाँग,बृषभ बहनु है। 
नाम बामदेव दाहिनो सदा असंग रंग, 
अद्ध अंग अंगना, अनंगको महनु है। 
तुलसी महेसको प्रभाव भावहीं सुगम,
 निगम-अगमहूको जानिबो गहनु है।
 भेष तौ भिखारिको  भयंकररूप संकर , 
दयाल दीनबंध्ुा दानि दारिददहनु है।।