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शरशय्या / तेसर सर्ग / भाग 15 / बुद्धिधारी सिंह 'रमाकर'

करु हुनकर शिक्षाक विधान।
पढ़थु कलामय शुभ विज्ञान।।85।।
नहि विध्वंशक हो संचार।
पालन बुद्धिक सतत प्रचार।।86।।

चिर दिनसँ अछि एतए विधान।
प्राणी मात्रक ली नहि प्राण।।87।।
अपन राज्यमे सबतरि बाउ!
सत्य अहिंसा मतिके लाउ।।88।।

भौतिक गति जँ बढ़ए विशेष।
स्वार्थ विवश हो सगरो देश।।89।।
आन्हर स्वार्थक पाछाँ भेल।
रहत न ककरो ककरो मेल।।90।।

“सबसँ पैघ सुखी धीमान।
कहबी जगमे हम श्रीमान्”।।91।।
एहन बुद्धिक होए विकाश।
छोड़ब तखनहि शान्तिक आश।।92।।