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शरशय्या / तेसर सर्ग / भाग 16 / बुद्धिधारी सिंह 'रमाकर'
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वसवा हेतुक बसुधा देह
वनल सभक हित उत्तम गेह।।93।।
बाँटि तकर तन शतशः खण्ड।
करइछ मानव भेल प्रचण्ड।।94।।
कण्ठ सुखाएल रस जे पूर।
करए पिआसक गतिकें दूर।।94।।
तकरो पर हो अत्याचार।
एक दिश रौदी अनतह धार।।96।।
नदी मातृका ऋषि गण मानि।
अन्नक हेतुक कहलन्हि जानि।।97।।
करु समुसचित अहँ तकर प्रबन्ध।
हृदय बीच नहि हो तटबन्ध।।98।।
शशि सूयक लए रश्मि महान।
अहँक प्रजागण पाबए त्राण।।99।।
जीतब तनि मण्डल नहि नीक।
ऋतु वैगुण्यक कारण थीक।।100।।