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शरशय्या / पहिल सर्ग / भाग 1 / बुद्धिधारी सिंह 'रमाकर'
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जनकक पावन चरणरज,
धारि अपन हम भाल।
सुअरि चिदेहक हृदयतल
चढ़बी सुमनक माल।।1।।
कर्म सिद्धि कए लेल जे
शिवमय सत्य स्वरूप।
तनिक ज्ञानवल पाविके
देखल जगतक रूप।।2।।
प्रजाप्रीतिवश कर्मरत
तजि राजस सभ भाय।
पोसल फालल मुदित मन
बाँटि सुधासद्भाव।।3।।
पूजि हुनक गुणराशिके
पूजन-बेला आभि
आनल भारतभारती-
सरस पंकज छानि।।4।।
कमल-कीर्ति सद्भावना
पत्र जकर अम्लान।
साजि मैथिली-गेहके
थापी अमरक ज्ञान।।5।।