भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शरशय्या / पहिल सर्ग / भाग 6 / बुद्धिधारी सिंह 'रमाकर'
Kavita Kosh से
दुष्टक करथि नाश ओ पलमे
दूर भगावथि अरिक समूह।
समर-भूमि विज्ञानक वेत्ता
करथि बुद्धिसँ अपनहिं ऊह।।26।।
हुनक अजेय शक्तिपर सदिखन
नत मस्तक सुरराज महान्।
दश दिक्पालक सकुचल सहजहि
सौर प्रभा फूसिक अभिमकान।।27।।
एहन वीर सूनल नहि कहिओ
बृद्ध कहथि अपनो इतिहास।
हुनका तुलनामे होइत छल
बड़ बड़ वीर जनक उपहास।।28।।
पाबि तनब कुल गौरब, विश्वक-
मणि विभूति आत्मज भूपाल।
शान्तनु गंगा शोक विसरिके
बितवथि सुदमय जीवन काल।।29।।
नाम गुणक तुल छल तें कखनहुँ
होथि न पथसँ विचल महीष।
हुनका घरमे बरइत निश दिन
रहथि एक युवराज प्रदीप।।30।।