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शहरीकरण / मुकेश निर्विकार
Kavita Kosh से
शहर की व्यस्त,
निज स्वार्थों में मस्त
जिंदगी से ऊबकर
एक दिन अचानक
मैं चल पड़ा—
शहर से दूर
किसी एकांत
प्रकृति भूवन—एक उपवन
की तलाश में।
काफी दूर पर
न था जहाँ कोई भी घर
मैंने प्रकृति को खुशहाल देखा
मगर पास ही,
रावण के ज्यों लांघते हुए लक्ष्मण-रेखा
गढ़ा हुआ एक बोर्ड लाल देखा
जहां प्रकृति के वध की चेतावनी में लिखा था—
“यह प्लाट बिकाऊ है”।
तब समझ आया मेरी कि
बढ़ते शहरीकरण का ढोर
तो बड़ा प्रकृति खाऊ है!