भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शारदे का मिला ही न वरदान है / बाबा बैद्यनाथ झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शारदे का मिला ही न वरदान है।
छन्द कैसे लिखूँ यह नहीं ज्ञान है।।

ध्यान देती कभी माँ कृपा जब करे,
श्रेष्ठ लेखन लगे खूब आसान है।

ज्ञान पाया मगर बाँटता ही नहीं,
वह कृपण आदमी एक नादान है।

प्राप्त विद्या हुई तो उसे बाँटिए,
यज्ञ सबसे बड़ा यह महादान है।

छूट जाए बुरी आदतें जो बनीं,
देश में चल सके एक अभियान है।

जान जाती अकारण किसी व्यक्ति की
एक आदत बुरी यह सुरा पान है

साथ ऐश्वर्य बाबा नहीं जा सके
कीर्ति की श्रेष्ठता मात्र पहचान है