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शासक सब ठो जादूगर / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'
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शासक सब ठो जादूगर
देश लगै छै भुतहाघर।
मंत्री तेॅ मालिक होलै
जनता तेॅ हुनकोॅ नौकर।
देह भले ही चिकनोॅ रं
मोॅन पहाड़ोॅ के पत्थर।
जंगल-जंगल लोग बसै
घोॅर-घोॅर मेॅ छै अजगर।
कखनी की होतै, यैठां
सबके हाथोॅ में अधभर।
आँख बिलाए रं चमकै
जीभ झुलै छै बित्ता भर।
सारस्वतोॅ के नामे से
निकली ऐलै सब बाहर।