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शिलान्यास-उद्घाटन / रामकुमार कृषक
Kavita Kosh से
शिलान्यास / उद्घाटन
अन्तराल दोनों का
पट नहीं रहा
मनचीता घट नहीं रहा !
बुनियादें / बुनियादी
गहराईं कई बार
ओर–छोर अम्बर को नाप
अर्थपूर्ण
अनगिन कर जाप,
फिर भी दुख लट नहीं रहा !
अधछाई / झोंपड़ियाँ
महलाईं बार–बार
घेर–घार माथे के प्लाट
ग़लीचा महसूसा
टाट,
फिर भी सुख डट नहीं रहा !
30 नवम्बर 1974