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संवेदनशील इलाक़ा / शरद कोकास

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अज़ान तब भी होती थी जब लाउडस्पीकर नहीं होते थे
मंदिरों में भजन भी गाए जाते थे
और मनुष्य की करुणा में ईश्वर का प्रवेश सायास नहीं था
आस्था किसी प्रमाण की मोहताज नहीं थी उन दिनों
और उसे लोकप्रिय होने का रोग भी नहीं लगा था
रमज़ान के दिनों में पूरे मोहल्ले की सुबह होती थी अलसुबह
जागो सहरी का वक़्त हो गया कहती निकलती थी टोलियाँ
सुबह के झुटपुटे में पहचान पाना मुश्किल उनमें रमेश कि रफीक़
इधर नसीम आपा सहरी बनाने में व्यस्त तो शकुंतला मौसी
बड़ी पापड़ अचार डालने जैसे साल भर के कामों में
और इफ़्तारी की दावत के चलते रामदुलारी चाची
पूरे माह चाचा के शाम के नाश्ते की फ़िक्र से बेफ़िक्र

सूरज को दिन भर इस बात का ख़्याल
कि उसकी तपिश से रोजे़दारों का रोज़ा न टूटे
और चाँद की मेहरबानी तो बस सुभानअल्लाह
उधर दीवाली में असगर चाचा की बढ़ी हुई सुगर
और चोरी-छुपे मिठाई खिलाती पंडिताइन की मीठी झिड़की

जीवन को मिठास से भर देने वाले यह दृश्य जिन्हें नसीब नहीं थे
वे इन्हें किताबों में पढ़ते और गुज़रे वक़्त की फिल्में देखते हुए
टाकीज़ों में पिछली सीट पर बैठकर आँसू बहाते
आधे घरों में दीवाली और आधे घरों में शब-बरात पर
प्यार की रोशनी लिये रोशन होते चराग़
और कोई शेखचिल्ली यह बेहूदा सवाल नहीं करता
कि दीवाली या शब-बरात साल में दो बार कैसे आई

और बौद्धिक सिर्फ शाख़ाओं या मदरसों में नहीं होता था
साहू का पान ठेला जिसे कॉफी हाउस की गरिमा प्राप्त थी
घंटों बहस करते वहाँ खान साहब, रविन्दर और रामेश्वर
राम की शक्ति पूजा से लेकर, इज़रत साहब की जीवनी
अमेरिकी साम्राज्यवाद और प्याज़ के बढ़े दामों पर

धर्म रोटी में गेहूँ की तरह शामिल था जहाँ दिनचर्या में
और ज़िन्दगी के किस्सों में कहानियों का मज़ा आता था
वह इलाका किसी राजाज्ञा से संवेदनशील घोषित कर दिया गया
फिर अचानक देर रात तक टीवी देखकर सोने वालों के लिए
सुबह की अज़ान और भजन परेशानी का सबब बन गए
धूप के बीच अचानक बारिश आने पर खुलने वाली छतरी की
तरह तनने लगे शामियाने हर शाम
और जाने कहाँ से आकर लोग
करने लगे उपदेशों की बारिश और आश्चर्य
कि आम लोग इस तरह भीगने में सुख महसूसने लगे

लाउड स्पीकरों से बाहर आने लगे शब्दों के दैत्य
गुड्डी बबल, मुन्नी और कल्लू को डराने लगे
नुक्कड़ पर दुआ सलाम के अलावा कुछ बाक़ी न रहा
और क्रिकेट जैसे ना टाले जा सकने वाले विषय के अलावा
टाली जाने लगीं मंदिर-मस्जिद इमाम व तोगड़िया की बातें
और भारत-पाकिस्तान मैच के दौरान
ठीक कारगिल की तरह दिखाई देने लगा मोहल्ला
धर्म की चर्चा में या तो सूचनाएँ शेष रह गईं या सूचियाँ
निश्चिंतता जैसे किराये के मकान में रह रही थी
मकान ख़ाली करते ही वहाँ आकर रहने लगी असुरक्षा

मोहर्रम और रामनवमी के जुलूस के लिए
अब कोई तयशुदा रास्ता नहीं था
जानबूझकर वह निकाला जाने लगा ऐसे रास्तों से
जो दिमाग की तरह तंग और सँकरे हो गए थे
इधर पहले से ज़्यादा आकर्षक बनाये जाने लगे ताज़िये
और राम की भूमिका में आने वाला युवक भी
पहले से ज़्यादा सुंदर और बलिष्ठ दिखाई देने लगा
इस बात के निहितार्थ क्या है इस पर चर्चा न करते हुए
नवाब भाई और सोनी जी पढ़ने लगे एक-दूसरे के चेहरे के हाव-भाव

अल्ला हू अकबर और हर-हर महादेव के नारे
पहले की तरह गूँते थे हवाओं में
अब भाव की जगह उनमें प्रधानता थी आवाज़ की
बुजुर्गों की आँखों में खटकते थे
जुलूस में शामिल लोगों से ज़्यादा पुलिसवाले
बीमार तिवारी जी को बिना नाग़ा देखने जाते
उनके बाल सखा हाजी इनायत उल्लाह की बूढ़ी आँखों में
साफ़ दिखाई देने लगा समय का यह वीभत्स चित्र

बस यहाँ से आगे फटा है वक़्त की किताब का पन्ना
जीवन के इस अर्धविराम पर सबके सब या तो चुप हैं
या भविष्य की अटकलों में बहुत ज़्यादा मुखर
यक्ष प्रश्न की तरह जनता के आगे खड़ा है सवाल
किस धर्मराज ने धर्म की किस नीति के तहत
इस इलाके को संवेदनशील घोषित किया है
फिर भी जैसे तूफान के बाद बचे रहते हैं पेड़
इलाके को फिर हरा-भरा करने का संकल्प लिए
बचे हैं कुछ लोग जिनके होने की वजह से
सद्भावना, भाईचारे और प्रेम के बीजों में उम्मीद बाक़ी है

ये लोग हलफ़ उठाकर कहना चाहेत हैं यह बात
कि संवेदनशील तो पहले ही था यह इलाक़ा
अब इसे संवेदनहीन किया जा रहा है।

-2003