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सर्द एहसास में / वाज़दा ख़ान
Kavita Kosh से
खारे समुद्र में स्वाद मिश्रित बूँदें
घुल रही हैं नमक में जैसे
घुलता है रक्त
अस्थि-मज्जा में ।
सूर्यग्रहण / चन्द्रग्रहण
कौन-सा ग्रहण है जीवन में
कि मुस्कुराहट घुल रही है सर्द एहसास में
कौन जाने ?
मगर कविताएँ
मुझे जीवन दान देती हैं
जो बनी हैं रक्त / अस्थि / मज्जा / सूर्यग्रहण / चन्द्रग्रहण /
स्वप्न / संवेदना / इच्छा से ।