साँझ हुई घर आए पंछी / रामगोपाल 'रुद्र'

साँझ हुई, घर आए पंछी, साँझ हुई, घर आए।

थका हुआ, हारा दिन-भर का,
राजहंस अम्बर-सरवर का,
अरुणचरण, श्रम-श्लथ, मंथरपद,
नत पतंग नीचे को सरका–
अशरण दीन पथी परदेसी जाए ज्यों सिर नाए।

तार-तार तृण का, तरुवर का,
सर का, सरिता का, निर्झर का,
गूँज उठा; गूँजा दिङ्‍ मण्डल;
रन्ध्र-रन्ध्र सस्वर भू-स्वर का;
विविध-वाद्य-संयुत जड़ जग ने रास सरस दुहराए।

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