साधन नाम-सम नहिं आन / हनुमानप्रसाद पोद्दार
(राग आसावरी-ताल रूपक)
साधन नाम-सम नहिं आन।
जपत सिव-सनकादि, सारद-नारदादि सुजान॥
नाम के बल मिटत भीषन असुभ भाग्य-बिधान।
नाम-बल मानव लहत सुख सहज मन-अनुमान॥
नाम टेरत टरत दारुन बिपति, सोक महान।
आर्त करि, नर-नारि, ध्रुव सब रहे सुचि सहिदान॥
नाम के परताप तें जल पर तरे पाषान।
नाम-बल सागर उलाँघ्यो सहज ही हनुमान॥
नाम-बल संभव सकल जे कछु असंभव जान।
धन्य ते नर, रहत जिनके नाम-रट की बान॥
पाप-पुंज प्रजारिबे-हित प्रबल पावक-खान।
होत छिन महँ छार, निकसत नाम जान-अजान॥
नाम-सुरसरि में निरंतर करत जे जन न्हान।
मिटत तीनों ताप मुख नहिं होत कबहुँ मलान॥
नाम-आश्रित जनन के मन बसत नित भगवान।
जरत खरत कु-वासना सब तुरत लज्जा-मान॥
नाम जीवन, नाम अमरित, नाम सुख को थान।
नाम-रत जे नाम-पर ते पुरुष अति मतिमान॥
नाम नित आनंद-निरझर, अति पुनीत पुरान।
मुक्त सत्वर होत जे जन करत सादर पान॥
नाम जपत सुसिद्ध जोगी बनत समरथवान।
नाम तें उपजत सु-भगति, बिराग सुभ बलवान॥
नाम के परताप दीखत प्रकृति-दीप बुझान।
नाम-बल ऊगत प्रभामय भानु तव-ज्ञान॥
नाम की महिमा अमित, को सकै करि गुन-गान।
राम तें बड़ नाम, जेहि बल बिकत श्रीभगवान॥