सुंदर स्याम सुजानसिरोमनि / गदाधर भट्ट
सुंदर स्याम सुजानसिरोमनि, देउँ कहा कहि गारी हो।
बड़े लोगके औगुन बरनत, सकुचि उठत मन भारी हो॥१॥
को करि सकै पिताको निरनौ जाति-पाँति को जाने हो।
जाके मन जैसीयै आवत तैसिय भाँति बखानै हो॥२॥
माया कुटिल नटी तन चितवत कौन बड़ाई पाई हो।
इहि चंचल सब जगत बिगोयो जहँ तहँ भई हँसाई हो॥३॥
तुम पुनि प्रगट होइ बारे तें कौन भलाई कीनी हो।
मुकुति-बधू उत्तम जन लायक लै अधमनिकों दीनी हो॥४॥
बसि दस मास गरभ माताके इहि आसा करि जाये हो।
सो घर छाँड़ि जीभके लालच भयो हो पूत पराये हो॥५॥
बारेतें गोकुल गोपिनके सूने घर तुम डाटे हो।
पैठे तहाँ निसंक रंक लौं दधिके भाजन चाटे हो॥६॥
आपु कहाइ धनीको ढोटा भात कृपन लौं माँग्यो हो।
मान भंग पर दूजैं जाचतु नैकु सँकोच न लाग्यो हो॥७॥
लोलुप तातें गोपिनके तुम सूने भवन ढँढोरे हो।
जमुना न्हात गोप-कन्यनिके निलज निपट पट चोरे हो॥८॥
बैनु बजाइ बिलास करत बन बोलि पराई नारी हो।
ते बातें मुनिराज सभामें ह्वै निसंक बिस्तारी हो॥९॥
सब कोउ कहत नंदबाबाको घर भर्यो रतन अमोलै हो।
गर गुंजा सिर मोर-पखौवा गायनके सँग डोलै हो॥१०॥
साधु-सभामें बैठनिहारो कौन तियन सँग नाचै हो।
अग्रज संग राज-मारगमें कुबजहिं देखत लाचै हो॥११॥
अपनि सहोदरि आपुहि छल करि अरजुन संग नसाई हो।
भोजन करि दासी-सुतके घर जादव जाति लजाई हो॥१२॥
लै लै भजै नृपतिकी कन्या यह धौं कौन बड़ाई हो।
सतभामा गोतमें बिबाही उलटी चाल चलाई हो॥१३॥
बहिन पिताकी सास कहाई नैकहुँ लाज न आई हो।
ऐसेइ भाँति बिधाता दीन्हीं सकल लोक ठकुराई हो॥१४॥
मोहन बसीकरन चट चेटक मंत्र जंत्र सब जानै हो।
तात भले जु भले सब तुमको भले भले करि मानै हो॥१५॥
बरनौं कहा जथा मति मेरी बेदहु पार न पावै हो।
भट्ट गदाधर प्रभुकी महिमा गावत ही उर आवै हो॥१६॥