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सुभ निसान बाजत / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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 सुभ निसान बाजत बृषभान-भौन आज री।
 प्रगटी रूप-भरी कुँवारि साँवर-सुख-साज री॥

 सुंदरि सब गात चलीं, सरस मधुर गीत री।
 सजे सब मँगल-कलस, हि‌एँ भरी प्रीति री॥

 कहत एक-’ह्वै हैं बस या के नँद-लाल री।
 दैहैं निज प्रियतम कौं परम सुख विसाल री’॥

 ‘धन्य भाग्य हमरौ’ एक कहत हँसी बाम री।
 ‘हमहू सुख दरस-परस पैहैं अभिराम री’॥

 दधि-माखन भरे माट सीसन धरि गोप री।
 आवत सब गो-रस बरसावत अति ओप री॥

 सिव, बिधि, सुरराज, सनक, नारदादि संत री।
 आ‌ए सब गुप्त, करत कीरति हियवंत री॥