भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सैर / शरद कोकास
Kavita Kosh से
डूबते सूरज ने
ज़िन्दगी से पूछा
मैं तो चला
तुम क्या करोगी अब
क्या चाँद से बातें करते हुए
हवा के पंखों पर सवार
बादलों की डोली में
निकलोगी सैर के लिए
अरमान अपनी जगह
अपनी जगह इच्छाएँ
बुझे हुए चूल्हे की हँसी
अपनी जगह।
-1996