भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सैर / शरद कोकास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

डूबते सूरज ने
ज़िन्दगी से पूछा
मैं तो चला
तुम क्या करोगी अब

क्या चाँद से बातें करते हुए
हवा के पंखों पर सवार
बादलों की डोली में
निकलोगी सैर के लिए

अरमान अपनी जगह
अपनी जगह इच्छाएँ
बुझे हुए चूल्हे की हँसी
अपनी जगह।

-1996