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सौन्दर्य - 2 / प्रेमघन
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लखतै वह रूप अनूप अहो,
अँखिया ललचाय लुभाय गई।
मन तो बिन मोल बिक्यो घन प्रेम,
प्रभावित बुद्धि बिलाय गई॥
अब चैन परै नहिं वाके बिना,
पढ़ि कौन सी मूठ चलाय गई।
वह चन्दकला सी अचानक हाय,
सुहाय हिये मैं समाय गई॥