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स्वप्न और वजूद / मुकेश निर्विकार

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स्वप्न और उम्मीदों के सहारे
वजूद कायम हैं हमारे

अभाव और इच्छाओं से ही
बना है यह समूचा संसार!
सूखे पेड़ के ठूठों को कुरेद कर देखो
दबी मिल जायेंगी उनमें तुम्हें
पंछियों को उड़ानें
उड़ानों के इतिहास। स्मृतियों व अतीत कथाएँ।

सूखे ठूंठ और कठोर पत्थर
कभी बेजान नहीं होते
ये अधूरी हसरतों के ही कठोरतम रूप हैं
ठोस में तब्दील!

किसी खण्डहर की प्राचीर से
या सूखे पेड़ की शाख से
उड़ा कपोत
आसमान की ऊचाइयाँ तक
पहूँचाते हैं इनके संदेश
और पुन: वापस आ बैठते हैं इन पर
उड़ान की कथा सुनाते!