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हमारा तीर कुछ भी हो निशाने तक पहुँचता है / मुनव्वर राना
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हमारा तीर कुछ भी हो निशाने तक पहुँचता है
परिन्दा कोई मौसम हो ठिकाने तक पहुँचता है
धुआँ बादल नहीं होता कि बादल दौड़ पड़ता है
ख़ुशी से कौन बच्चा कारख़ाने तक पहुँचता है
हमारी मुफ़लिसी पर आपको हँसना मुबारक हो
मगर यह तंज़ हर सैयद घराने तक पहुँचता है
मैं चाहूँ तो मिठाई की दुकानें खोल सकता हूँ
मगर बचपन हमेशा रामदाने तक पहुँचता है
अभी ऐ ज़िन्दगी तुमको हमारा साथ देना है
अभी बेटा हमारा सिर्फ़ शाने तक पहुँचता है
सफ़र का वक़्त आ जाये तो फिर कोई नहीं रुकता
मुसाफ़िर ख़ुद से चल कर आब-ओ-दाने तक पहुँचता है.