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घर अकेला हो गया / मुनव्वर राना
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घर अकेला हो गया
रचनाकार | मुनव्वर राना |
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प्रकाशक | वाणी प्रकाशन,
21- ए , दरिया गंज नई दिल्ली 110002 |
वर्ष | 2008 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 136 |
ISBN | 978-81-8143-978-9 |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है / मुनव्वर राना
- मुहब्बत करने वालों में ये झगड़ा डाल देती है/ मुनव्वर राना
- दुनिया तेरी रौनक़ से मैं अब ऊब रहा हूँ / मुनव्वर राना
- जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है/ मुनव्वर राना
- बुलन्दी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है / मुनव्वर राना
- मेरी ख़्वाहिश है कि फिर से मैं फ़रिश्ता हो जाऊँ / मुनव्वर राना
- न मैं कंघी बनाता हूँ न मैं चोटी बनाता हूँ / मुनव्वर राना
- हमारा तीर कुछ भी हो निशाने तक पहुँचता है / मुनव्वर राना
- हर इक आवाज़ अब उर्दू को फ़रियादी बताती है / मुनव्वर राना
- बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती है / मुनव्वर राना
- भरोसा मत करो साँसों की डोरी टूट जाती है / मुनव्वर राना
- हमारी ज़िन्दगी का इस तरह हर साल कटता है / मुनव्वर राना
- घरौंदे तोड़ कर साहिल से यूँ पानी पलटता है / मुनव्वर राना
- समझौतों की भीड़-भाड़ में सबसे रिश्ता टूट गया / मुनव्वर राना
- अगर दौलत से ही सब क़द का अंदाज़ा लगाते हैं / मुनव्वर राना
- वो ज़ालिम मेरी हर ख़्वाहिश ये कहकर टाल जाता है / मुनव्वर राना
- सियासी आदमी की शक्ल तो प्यारी निकलती है / मुनव्वर राना
- किसी भी चेहरे को देखो गुलाल होता है / मुनव्वर राना
- नींद अपने आप दीवाने तलक तो आ गई / मुनव्वर राना
- कोयल बोले या गौरैया अच्छा लगता है / मुनव्वर राना
- तितली ने गुल को चूम के दुल्हन बना दिया / मुनव्वर राना
- ऐन ख़्वाहिश के मुताबिक़ सब उसी को मिल गया / मुनव्वर राना
- यह एहतेराम तो करना ज़रूर पड़ता है / मुनव्वर राना
- यह मत समझ कि अर्श-ए-मुअल्ला उसी का है / मुनव्वर राना
- कहाँ रोना है मुझको दीदा-ए-पुरनम समझता है / मुनव्वर राना
- बिछड़ा कहाँ है भाई हमारा सफ़र में है / मुनव्वर राना
- हम सायादार पेड़ ज़माने के काम आये / मुनव्वर राना
- जब कभी धूप की शिद्दत ने सताया मुझको / मुनव्वर राना
- इश्क़ में राय बुज़ुर्गों से नही ली जाती / मुनव्वर राना
- बाज़ारी पेटीकोट की सूरत हूँ इन दिनों / मुनव्वर राना
- हमारी बेबसी देखो उन्हें हमदर्द कहते हैं / मुनव्वर राना
- मियाँ रुसवाई दौलत के तआवुन से नहीं जाती / मुनव्वर राना
- मुझको हर हाल में बख़्शेगा उजाला अपना / मुनव्वर राना
- मुख़ालिफ़ सफ़ भी ख़ुश होती है लोहा मान लेती है / मुनव्वर राना
- दामन को आँसुओं से शराबोर कर दिया / मुनव्वर राना
- तू कभी देख तो रोते हुए आकर मुझको / मुनव्वर राना
- रोने में एक ख़तरा है तालाब नदी हो जाते हैं / मुनव्वर राना
- मर्ज़ी-ए-मौला मौला जाने / मुनव्वर राना
- इस पेड़ में एक बार तो आ जायें समर भी / मुनव्वर राना
- हाँ इजाज़त है अगर कोई कहानी और है / मुनव्वर राना
- कुछ मेरी वफ़ादारी का इनआम दिया जाए / मुनव्वर राना
- गले मिलने को आपस में दुआएँ रोज़ आती हैं / मुनव्वर राना
- घरों को तोड़ता है ज़ेहन में नक़्शा बनाता है / मुनव्वर राना
- सारा शबाब क़ैस ने सहरा को दे दिया / मुनव्वर राना
- न जाने कैसा मौसम हो दुशाला ले लिया जाये / मुनव्वर राना
- चिराग़े-ए-दिल बुझाना चाहता था / मुनव्वर राना
- नहीं होती अगर बारिश तो पत्थर हो गये होते / मुनव्वर राना
- ऐ अँधेरे देख ले मुँह तेरा काला हो गया / मुनव्वर राना
- सरफ़िरे लोग हमें दुश्मन-ए-जाँ कहते हैं / मुनव्वर राना
- एक-न-एक रोज़ तो होना है ये जब हो जाये / मुनव्वर राना
- बस इतनी बात पर उसने हमें बलवाई लिक्खा है / मुनव्वर राना
- अजब दुनिया है नाशायर यहाँ पर सर उठाते हैं / मुनव्वर राना
- आँखों में कोई ख़्वाब सुनहरा नहीं आता / मुनव्वर राना
- साथ अपने रौनक़ें शायद उठा ले जाएँगे / मुनव्वर राना
- गौतम की तरह घर से निकल कर नहीं जाते / मुनव्वर राना
- जो उसने लिक्खे थे ख़त कापियों में छोड़ आए / मुनव्वर राना
- फ़रिश्ते आ उनके जिस्म पर ख़ुश्बू लगाते हैं / मुनव्वर राना
- धँसती हुई क़ब्रों की तरफ़ देख लिया था / मुनव्वर राना
- तू हर परिन्दे को छत पर उतार लेता है / मुनव्वर राना
- मुफ़लिसी पास-ए-शराफ़त नहीं रहने देती / मुनव्वर राना
- दश्त-ओ-सहरा में कभी उजड़े सफ़र में रहना / मुनव्वर राना
- हँसते हुए माँ-बाप की गाली नहीं खाते / मुनव्वर राना
- जिस्म का बरसों पुराना ये खँडर गिर जाएगा / मुनव्वर राना
- मेरे कमरे में अँधेरा नहीं रहने देता / मुनव्वर राना
- हम पर अब इस लिए ख़ंजर नहीं फैंका जाता / मुनव्वर राना
- कभी ख़ुशी से ख़ुशी की तरफ़ नहीं देखा / मुनव्वर राना
- हालाँकि हमें लौट के जाना भी नहीं है / मुनव्वर राना
- नाकामियों के बाद भी हिम्मत वही रही / मुनव्वर राना
- बजाए इसके कि संसद दिखाई देने लगे / मुनव्वर राना
- बहुत हसीन-सा इक बाग़ घर के नीचे है / मुनव्वर राना
- मैं उसको छोड़ न पाया बुरी लतों की तरह / मुनव्वर राना
- इसी गली में वो भूखा किसान रहता है / मुनव्वर राना
- किताब-ए-जिस्म पर इफ़लास की दीमक का क़ब्ज़ा है / मुनव्वर राना
- कोई चेहरा किसी को उम्र भर अच्छा नहीं लगता/ मुनव्वर राना
- नुमाइश के लिए गुलकारियाँ दोनों तरफ़ से हैं / मुनव्वर राना
- वह मुझे जुरअत-ए-इज़हार से पहचानता है / मुनव्वर राना ]
- पैरों को मेरे दीदा-ए-तर बाँधे हुए है / मुनव्वर राना
- वो महफ़िल में नहीं खुलता है तनहाई में खुलता है / मुनव्वर राना
- हम कुछ ऐसे तेरे दीदार में खो जाते हैं / मुनव्वर राना
- मियाँ मैं शेर हूँ शेरों की गुर्राहट नहीं जाती / मुनव्वर राना
- जिसे दुश्मन समझता हूँ वही अपना निकलता है / मुनव्वर राना
- मोहब्बत करने वाला ज़िन्दगी भर कुछ नहीं कहता / मुनव्वर राना
- हम कभी जब दर्द के क़िस्से सुनाने लग गये / मुनव्वर राना
- सबके कहने से इरादा नहीं बदला जाता / मुनव्वर राना
- मुसलसल गेसुओं की बरहमी अच्छी नहीं होती / मुनव्वर राना
- जहाँ तक हो सका हमने तुम्हें पर्दा कराया है / मुनव्वर राना
- शरीफ़ इन्सान आख़िर क्यों एलेक्शन हार जाता है / मुनव्वर राना
- हर एक शख्स ख़फ़ा-सा दिखाई देता है / मुनव्वर राना
- आपको चेहरे से भी बीमार होना चाहिए / मुनव्वर राना
- अमीर-ए-शहर को तलवार करने वाला हूँ / मुनव्वर राना
- मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता / मुनव्वर राना
- मैं अपने हल्क़ से अपनी छूरी गुज़ारता हूँ / मुनव्वर राना
- मैं दहशतगर्द था मरने पे बेटा बोल सकता है / मुनव्वर राना
- थकी-माँदी हुई बेचारियाँ आराम करती हैं / मुनव्वर राना
- ये संसद है यहाँ भगवान का भी बस नहीं चलता / मुनव्वर राना
- क़सम देता है बच्चों की बहाने से बुलाता है / मुनव्वर राना
- झूठ बोला था तो यूँ मेरा दहन दुखता है / मुनव्वर राना
- यूँ आज कुछ चराग़ हवा से उलझ पड़े / मुनव्वर राना
- उन घरों में जहाँ मिट्टी के घड़े रहते हैं / मुनव्वर राना
- एक आँगन में दो आँगन हो जाते हैं / मुनव्वर राना
- कुछ रोज़ से हम सिर्फ़ यही सोच रहे हैं / मुनव्वर राना
- यह देख कर पतंगें भी हैरान हो गईं / मुनव्वर राना
- खिलौने की तरफ़ बच्चे को माँ जाने नहीं देती / मुनव्वर राना
- अभी तक कुछ नहीं बिगड़ा, अभी बीमार / मुनव्वर राना
- ज़रूरत से अना का भारी पत्थर टूट जाता है / मुनव्वर राना
- ख़ुदा-ना-ख़्वास्ता दोज़ख़-मकानी हो गये होते / मुनव्वर राना
- सियासत से अदब की दोस्ती बेमेल लगती है / मुनव्वर राना
- किसी का क़द बढ़ा देना किसी के क़द को कम कहना / मुनव्वर राना
- जिस्म पर मिट्टी मलेंगे पाक हो जाएँगे हम / मुनव्वर राना
- हमारे कुछ गुनाहों की सज़ा भी साथ चलती है / मुनव्वर राना
- ज़िन्दगी से हर ख़ुशी अब ग़ैर-हाज़िर हो गई / मुनव्वर राना
- ये दीवाना ज़माने भर की दौलत छोड़ सकता है / मुनव्वर राना