भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साथ अपने रौनक़ें शायद उठा ले जाएँगे / मुनव्वर राना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


साथ अपने रौनक़ें शायद उठा ले जायेंगे
जब कभी कालेज से कुछ लड़के निकाले जायेंगे

हो सके तो दूसरी कोई जगह दे दीजिये
आँख का काजल तो चन्द आँसू बहा ले जायेंगे

कच्ची सड़कों पर लिपट कर बैलगाड़ी रो पड़ी
ग़ालिबन परदेस को कुछ गाँव वाले जायेंगे

हम तो एक अखबार से काटी हुई तसवीर हैं
जिसको काग़ज़ चुनने वाले कल उठा ले जायेंगे

हादसों की गर्द से ख़ुद को बचाने के लिये
माँ, हम अपने साथ बस तेरी दुआ ले जायेंगे