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हर एक शख्स ख़फ़ा-सा दिखाई देता है / मुनव्वर राना

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हर एक शख़्स खफ़ा-सा दिखाई देता है
चहार सम्त कुहासा दिखाई देता है

हर इक नदी उसे सैराब कर चुकी है मगर
समन्दर आज भी प्यासा दिखाई देता है

ज़रूरतों ने अजब हाल कर दिया है अब
तमाम जिस्म ही कासा दिखाई देता है

वहाँ पहुँच के ज़मीनों को भूल जाओगे
यहाँ से चाँद ज़रा-सा दिखाई देता है

खिलेंगे फूल अभी और भी जवानी के
अभी तो एक मुँहासा दिखाई देता है

मैं अपनी जान बचाकर निकल नहीं सकता
कि क़ातिलों में शनासा दिखाई देता है