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जहाँ तक हो सका हमने तुम्हें पर्दा कराया है / मुनव्वर राना
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जहाँ तक हो सका हमने तुम्हें परदा कराया है
मगर ऐ आँसुओ ! तुमने बहुत रुस्वा कराया है
चमक ऐसे नहीं आती है ख़ुद्दारी के चेहरे पर
अना को हमने दो-दो वक़्त का फ़ाक़ा कराया है
बड़ी मुद्दत पे पाई हैं ख़ुशी से गालियाँ हमने
बड़ी मुद्दत पे उसने आज मुँह मीठा कराया है
बिछड़ना उसकी ख़्वाहिश थी न मेरी आरज़ू लेकिन
ज़रा-सी ज़िद ने इस आँगन का बँटवारा कराया है
कहीं परदेस की रंगीनियों में खो नहीं जाना
किसी ने घर से चलते वक़्त ये वादा कराया है