भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हालाँकि हमें लौट के जाना भी नहीं है / मुनव्वर राना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


हालाँकि हमें लौट के जाना भी नहीं है
कश्ती मगर इस बार जलाना भी नहीं है

तलवार न छूने की कसम खाई है लेकिन
दुश्मन को कलेजे से लगाना भी नहीं है

यह देख के मक़तल में हँसी आती है मुझको
सच्चा मेरे दुश्मन का निशाना भी नहीं है

मैं हूँ मेरी बच्चा है, खिलौनों की दुकाँ है
अब कोई मेरे पास बहाना भी नहीं है

पहले की तरह आज भी हैं तीन ही शायर
यह राज़ मगर सब को बताना भी नहीं है