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अभी तक कुछ नहीं बिगड़ा, अभी बीमार / मुनव्वर राना
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अभी तक कुछ नहीं बिगड़ा अभी बीमार ज़िन्दा है
अभी इस शहर में उर्दू का इक अख़बार ज़िन्दा है
नदी की तरह होती हैं ये सरहद की लकीरें भी
कोई इस पार ज़िन्दा है कोई उस पार ज़िन्दा है
ख़ुदा के वास्ते ऐ बेज़मीरी गाँव मत आना
यहाँ भी लोग मरते हैँ मगर किरदार ज़िन्दा है